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भोजपुरी भाषा की उत्पत्ति: कब और कैसे हुई?

भोजपुरी भाषा की उत्पत्ति: कब और कैसे हुई?

भोजपुरी भाषा: भारत की एक समृद्ध, भावपूर्ण और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध भाषा है, जो मुख्यतः उत्तर भारत के बिहार, उत्तर प्रदेश (पूर्वांचल), झारखंड, और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बोली जाती है। यह भाषा आज विश्व स्तर पर फैल चुकी है — खासकर मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो जैसे देशों में भी इसका प्रचलन है। लेकिन प्रश्न यह है: भोजपुरी भाषा की उत्पत्ति कब और कैसे हुई?

इस लेख में हम भोजपुरी के इतिहास, उत्पत्ति, विकासक्रम और वैश्विक विस्तार पर गहराई से चर्चा करेंगे।


Table of Contents

🔷 भोजपुरी की उत्पत्ति:

📜 1. भाषाई परिवार और जड़ें:

भोजपुरी भाषा हिन्द-आर्य भाषाओं के अंतर्गत आती है, जो कि भारोपीय भाषा परिवार (Indo-European Language Family) का एक हिस्सा है। इसका जन्म प्राचीन मध्य-अपभ्रंश भाषाओं से हुआ, खासकर मगधी अपभ्रंश से।

📚 2. ऐतिहासिक समयरेखा:

कालखंडप्रमुख विशेषता
1000 BCE – 500 CEवैदिक और संस्कृत प्रभाव वाला काल, जहाँ आर्य भाषाएँ विकसित हो रही थीं।
500 CE – 1000 CEपाल राजवंश के दौरान मगधी अपभ्रंश का प्रचलन। भोजपुरी के बीज यहीं पड़े।
1000 CE – 1500 CEभोजपुरी ने एक स्वतंत्र बोली का रूप लेना शुरू किया।
1500 CE – वर्तमानभोजपुरी का विकास, साहित्यिक अभिव्यक्ति और भाषाई पहचान का काल।

🔷 भोजपुरी भाषा का विकास कैसे हुआ?

  1. मगधी से अपभ्रंश और फिर भोजपुरी:
    पाल और मगध साम्राज्य के दौरान प्रचलित मगधी प्राकृत ने बाद में अपभ्रंश का रूप लिया, जो धीरे-धीरे क्षेत्रीय बोलियों में विभाजित हुआ। इसमें से एक भोजपुरी बनी, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार की लोक बोली बन गई।
  2. लोक साहित्य और संस्कृति का योगदान:
    भोजपुरी में लोक गीत, भक्ति गीत, बिरहा, कजरी, छठ गीत, आदि ने इसे जनमानस की भाषा बना दिया। इसकी मिठास, भावनात्मक गहराई और संवाद की सहजता ने इसे बेहद लोकप्रिय बना दिया।
  3. ब्रज और अवधी से भिन्नता:
    यद्यपि भोजपुरी, अवधी और ब्रज जैसी अन्य पूर्वी भाषाओं से मिलती-जुलती है, लेकिन इसकी ध्वनि-व्यवस्था, शब्द संरचना और व्याकरण इसे अलग पहचान देती है।

🔷 भोजपुरी भाषा साहित्य का आरंभ:

भोजपुरी में सबसे पहले लोक साहित्य के रूप में रचनाएँ प्रचलित हुईं।
कुछ प्रसिद्ध प्रारंभिक साहित्यकारों में शामिल हैं:

  • भिखारी ठाकुर: भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाते हैं।
  • राहुल सांकृत्यायन: इन्होंने भोजपुरी भाषा के पक्ष में अनेक लेख और रचनाएँ दीं।
  • भदंत आनंद कौसल्यायन: बुद्ध धर्म के प्रचार में भोजपुरी का उपयोग किया।

🔷 भोजपुरी भाषा का वैश्विक विस्तार:

19वीं सदी के दौरान ब्रिटिश साम्राज्य ने गिरमिटिया मजदूरों को बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश से मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, ट्रिनिडाड-टोबैगो आदि देशों में भेजा। उनके साथ भोजपुरी भी गई और आज इन देशों में यह भाषा एक सांस्कृतिक पहचान बन चुकी है।


🔷 भोजपुरी भाषा की वर्तमान स्थिति:

  • बोलने वालों की संख्या: लगभग 20 करोड़ से अधिक।
  • संवैधानिक मान्यता: भोजपुरी को भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग लंबे समय से चल रही है।
  • मीडिया में विस्तार: भोजपुरी सिनेमा, टीवी चैनल्स, यूट्यूब कंटेंट, लोक गीत और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म ने इसे नई पहचान दी है।

यह रही भोजपुरी साहित्य के प्रमुख लेखकों की सूची, जिन्होंने इस भाषा को समृद्ध करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है:


🔷 भोजपुरी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक एवं कवि:

📚 1. भिखारी ठाकुर (1887–1971)

  • उपाधि: “भोजपुरी के शेक्सपियर”
  • प्रमुख कृतियाँ: बिदेसिया, गबर घिचोर, बेटी बेचवा
  • योगदान: नाटक, लोकगीत, सामाजिक चेतना

📚 2. राहुल सांकृत्यायन (1893–1963)

  • बहुभाषाविद एवं यात्रा लेखक
  • भोजपुरी में कथा, लेख, तथा भाषाविज्ञान पर कार्य
  • कृति: Volga Se Ganga (भोजपुरी रूपांतरण)

📚 3. देवकी नंदन खत्री (1861–1913)

  • हिंदी-भोजपुरी भाषा में शुरुआती उपन्यासकार
  • प्रसिद्ध कृति: चंद्रकांता

📚 4. पांडेय कपिल (1902–1982)

  • भोजपुरी कविता व कहानी के क्षेत्र में अग्रणी
  • प्रमुख विधा: काव्य और नाटक

📚 5. भोलानाथ गुप्त

  • “भोजपुरी साहित्य सम्मेलन” के सक्रिय सदस्य
  • लेखन में ग्रामीण जीवन और लोक संस्कृति का चित्रण

📚 6. विनय बिहारी सिंह

  • भोजपुरी फिल्मों के गीतकार और लेखक
  • आधुनिक भोजपुरी साहित्य में योगदान

📚 7. डॉ. विष्णुदेव शर्मा

  • भोजपुरी व्याकरण और भाषा संरचना पर शोधकर्ता
  • शिक्षा और शैक्षणिक साहित्य में योगदान

📚 8. राजेन्द्र दुबे ‘राही’

  • कवि और भोजपुरी भाषा के संवाहक
  • लोकगीतों और समसामयिक कविता लेखन में सक्रिय

📚 9. संतोष सिंह

  • भोजपुरी उपन्यास और समसामयिक विषयों पर लेखन
  • ग्रामीण यथार्थ पर आधारित साहित्य

📚 10. गंगा प्रसाद गुप्त

  • भाषाविज्ञान में योगदान
  • भोजपुरी के विकास और संरक्षण पर कार्य

यह रही भोजपुरी साहित्य की एक संक्षिप्त और क्रमबद्ध समयरेखा (Timeline) जो इसके ऐतिहासिक विकास को दर्शाती है:


📜 भोजपुरी साहित्य की समयरेखा

🔹 प्राचीन काल (10वीं – 14वीं शताब्दी):

  • भोजपुरी का रूप मगधी अपभ्रंश से विकसित होना शुरू।
  • लोकगीत, जनश्रुतियाँ और पारंपरिक कहानियों का मौखिक रूप में प्रसार।
  • कोई लिखित प्रमाण नहीं, लेकिन भाषा का मौलिक आधार इसी समय तैयार हुआ।

🔹 मध्यकाल (15वीं – 18वीं शताब्दी):

  • लोक भक्ति आंदोलन के दौरान भोजपुरी में भजन, कीर्तन, भक्ति गीतों की रचना।
  • लोक कवि कबीर, धरनीदास, दरियादास आदि ने भोजपुरी तत्वों का प्रयोग किया।
  • तानसेन, तुलसीदास की रचनाओं में भोजपुरी मिश्रित रूप देखने को मिलता है।

🔹 आधुनिक प्रारंभिक काल (19वीं सदी):

  • भिखारी ठाकुर (1887–1971): “बिदेसिया”, “गबर घिचोर”, “बेटी बेचवा” जैसी रचनाएँ।
  • लोकनाट्य और सामाजिक विषयों पर भोजपुरी में सशक्त साहित्य।
  • देवकी नंदन खत्री की कहानियों में भोजपुरी छाया।
  • इस युग में भोजपुरी नाटक और गीत लोकप्रिय हुए।

🔹 20वीं सदी (1900 – 2000):

  • राहुल सांकृत्यायन, पांडेय कपिल, भोलानाथ गुप्त जैसे विद्वानों का आगमन।
  • भोजपुरी साहित्य में उपन्यास, कहानी, निबंध, कविता का विस्तार।
  • स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक सुधारों से प्रेरित रचनाएँ।
  • 1960–70 में “भोजपुरी साहित्य सम्मेलन” जैसे मंच सक्रिय।

🔹 21वीं सदी (2000 – वर्तमान):

  • भोजपुरी में फिल्म, टीवी, डिजिटल मीडिया के माध्यम से साहित्य का विस्तार।
  • विनय बिहारी, राही मासूम रज़ा, डॉ. विष्णुदेव शर्मा जैसे समकालीन रचनाकार।
  • यूट्यूब, पोडकास्ट, और ई-बुक्स ने भोजपुरी को नया प्लेटफ़ॉर्म दिया।
  • भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग तेज।

यह रहा भोजपुरी साहित्यिक विधाओं का परिचय, जो इस भाषा की सांस्कृतिक और साहित्यिक गहराई को दर्शाता है:


📖 भोजपुरी साहित्यिक विधाएँ: एक परिचय

भोजपुरी साहित्य का आधार लोकजीवन, जनमानस की भावना, संघर्ष, आस्था, और हास्य-विनोद रहा है। इसकी विविध विधाएँ इस भाषा की बहुआयामी प्रकृति को उजागर करती हैं।


🔷 1. काव्य (Poetry)

🪷 लोकगीत

  • यह भोजपुरी साहित्य की सबसे प्राचीन और जीवंत विधा है।
  • प्रकार: विवाह गीत, सोहर, कजरी, चैता, झूमर, बिरहा, आल्हा
  • विशेषता: लोकजीवन की झलक, भावना प्रधान शैली, मौखिक परंपरा

🪷 भक्ति काव्य

  • संत कवियों जैसे धरनीदास, दरियादास, कबीर की रचनाएँ
  • भक्ति और अध्यात्म से ओत-प्रोत

🪷 समकालीन कविता

  • सामाजिक, राजनीतिक, प्रेम और ग्रामीण जीवन पर आधारित
  • उदाहरण: राही मासूम रज़ा, गोरख पांडेय, रघुवंश मणि

🔷 2. नाटक (Drama)

🎭 लोकनाटक / भिखारी ठाकुर शैली

  • प्रमुख उदाहरण: बिदेसिया, बेटी बेचवा, गबर घिचोर
  • सामाजिक कुरीतियों पर व्यंग्य और संवेदना
  • मंचीय प्रदर्शन के लिए रचित, संवाद प्रधान

🎭 आधुनिक भोजपुरी रंगमंच

  • ग्राम्य जीवन की सच्चाइयों और राजनीतिक विषयों पर केंद्रित
  • शैलीगत रूप से हिंदी नाटकों से प्रभावित

🔷 3. कहानी और उपन्यास (Fiction)

📘 लघुकथा और कहानी

  • समाजिक विषयों, महिला जीवन, बेरोजगारी, पलायन पर आधारित
  • सरल भाषा, स्थानीय मुहावरे और जीवंत चित्रण

📕 उपन्यास

  • आधुनिक भोजपुरी साहित्य में उपन्यास विधा ने स्थान बनाया है
  • उदाहरण: भोजपुरी समाज पर आधारित रचनाएँ — “खून भरा आंसू”, “गोबर गाथा”

🔷 4. निबंध और लेख (Essays)

  • भोजपुरी भाषा, संस्कृति, परंपरा और साहित्य पर लेखन
  • भाषाई आंदोलन, अस्मिता, संविधान में मान्यता जैसे मुद्दों पर केंद्रित
  • प्रमुख लेखक: डॉ. विष्णुदेव शर्मा, विनय बिहारी सिंह

🔷 5. भोजपुरी सिने गीत (Film Lyrics)

  • 1960 के दशक से भोजपुरी फिल्मों का आरंभ
  • गीतों में प्रेम, संघर्ष, सामाजिक संदेश
  • लेखक: विनय बिहारी, शैलेश मटियानी

🔷 6. लोक साहित्य (Oral Literature)

🔊 पौराणिक कथाएँ, दंतकथाएँ, और किंवदंतियाँ

  • मौखिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आईं
  • गाँव की चौपाल, मेले, पर्वों पर सुनाई जाती थीं

🔊 मुहावरे और कहावतें

  • भोजपुरी की जीवंतता इन्हीं से है
  • समाज की समझदारी और व्यावहारिक बुद्धि का प्रमाण

यह रहा भोजपुरी लोकगीतों के प्रकार पर एक चार्ट, जो विभिन्न अवसरों, भावनाओं और लोकजीवन से जुड़ी परंपराओं के अनुसार वर्गीकृत है:


📊 भोजपुरी लोकगीतों के प्रकार – चार्ट

🎶 लोकगीत का नाम🪔 गायन अवसर / प्रयोजन💬 मुख्य विषय / विशेषता
सोहरबच्चे के जन्म परनवजात शिशु की प्रशंसा, मातृत्व की खुशी
कजरीसावन ऋतु मेंविरह, प्रेम, प्रकृति की सुंदरता
चैतावसंत और होली के समयश्रृंगार रस, कृष्ण-राधा प्रेम
बरहमासाबारह महीने की स्थितिहर महीने की भावनात्मक कथा
झूमरशादी-ब्याह, मेले मेंउल्लास, नृत्य प्रधान गीत
बिरहावीरता व पीड़ा से युक्तसामाजिक संघर्ष, प्रेम-विरह
आल्हायुद्ध गाथाएँवीर रस, ऐतिहासिक योद्धाओं का गुणगान
विवाह गीतविवाह के विभिन्न अवसरहल्दी, मटकोर, कन्यादान आदि पर आधारित गीत
ननद-भौजाई गीतपारिवारिक रिश्तों परहास्य, चुटकी और हँसी-मजाक
फगुआ / फग गीतहोली के अवसर पररंग, उल्लास, सामाजिक मेलजोल
कन्यादान गीतकन्या विदाई के समयभावुकता, विदाई की पीड़ा
छठ गीतछठ पर्व के दौरानसूर्य देवता की आराधना, आस्था और पारिवारिक सुख-शांति
कजरी विरह गीतपति से दूर रहने परमहिला की पीड़ा, वर्षा ऋतु का प्रभाव

🎵 नोट: ये गीत पीढ़ियों से मौखिक परंपरा के माध्यम से चले आ रहे हैं, और आज भी गांवों में ये रसपूर्वक गाए जाते हैं।

यह रही भोजपुरी लोकगीतों की त्योहार आधारित सूची, जो विभिन्न पर्वों पर गाए जाने वाले पारंपरिक गीतों को दर्शाती है:


🎉 भोजपुरी त्योहार आधारित लोकगीतों की सूची

🗓️ त्योहार🎶 लोकगीत का नाम / प्रकार💬 विषय / विशेषता
छठ पूजाछठ गीतसूर्य आराधना, परिवार की खुशहाली, नारी समर्पण
होलीफगुआ, फग गीत, चैतारंग, हास्य-विनोद, प्रेम, भक्ति और सामाजिक मिलन
श्रावण मास / सावनकजरी, झूला गीतरिमझिम वर्षा, विरह, स्त्री भावनाएँ
दीपावलीलक्ष्मी गीत, धनतेरस गीतलक्ष्मी वंदना, घर में समृद्धि की कामना
नवरात्रि / दुर्गा पूजादुर्गा गीत, जागरण गीतशक्ति उपासना, देवी स्तुति
रक्षा बंधनबहन-भाई गीतभाई-बहन का प्रेम, वचन, भावुकता
मकर संक्रांतितिलकुट गीत, संक्रांति बधाई गीतपर्व के खाद्य व धार्मिक महत्व की अभिव्यक्ति
करवा चौथव्रत कथा गीत, सजनवा गीतपति की लंबी उम्र, नारी भक्ति
रामनवमीराम जन्म गीत, भक्ति गीतरामायण प्रसंग, भक्ति रस
जन्माष्टमीकृष्ण लीला गीत, चहेटा, भजनराधा-कृष्ण प्रेम, बाल लीलाएं
विवाह / हल्दी / कन्यादानसोहर, सगाई गीत, कन्यादान गीतपारिवारिक भावनाएँ, उत्सव और हर्षोल्लास

📌 नोट:

भोजपुरी लोकगीत केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक, धार्मिक और पारिवारिक परंपराओं को जीवित रखने का माध्यम हैं। ये गीत गांवों में महिलाओं की सामूहिक गायकी से और भी अधिक भावनात्मक हो जाते हैं।


🔷 निष्कर्ष:

भोजपुरी भाषा सिर्फ एक बोली नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक चेतना है जो हजारों वर्षों के इतिहास, परंपरा और जनमानस की भावनाओं से जुड़ी है। इसकी उत्पत्ति प्राकृत और अपभ्रंश के मार्ग से होते हुए आज के आधुनिक युग तक पहुंची है। यह भाषा न केवल जीवित है, बल्कि लगातार फल-फूल रही है।

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